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राष्ट्रीय शिल्प मेले में भक्ति और लोकनृत्य का संगम

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सांस्कृतिक संध्या में दर्शक मंत्रमुग्ध, आज कवि सम्मेलन और मुशायरा

प्रयागराज (राजेश सिंह)। प्रयागराज में चल रहा दस दिवसीय राष्ट्रीय शिल्प मेला श्एक भारत श्रेष्ठ भारतश् की भावना को साकार कर रहा है। सोमवार को मेले की आठवीं सांस्कृतिक संध्या में भक्ति, लोकनृत्य और पारंपरिक संगीत की मनोहारी प्रस्तुतियां हुईं, जिन्होंने दर्शकों को देर रात तक मंत्रमुग्ध रखा।

मेला परिसर में देश के विभिन्न राज्यों से आए शिल्पकार अपने हस्तनिर्मित उत्पादों, पारंपरिक परिधानों, कलाकृतियों और घरेलू सजावटी वस्तुओं का प्रदर्शन कर रहे हैं। यह मेला शहरवासियों को खरीदारी के साथ-साथ भारत की विविध सांस्कृतिक विरासत को करीब से देखने का अवसर प्रदान कर रहा है।

सांस्कृतिक संध्या का शुभारंभ मुख्य अतिथि प्रोफेसर संजय सिंह (आईआईटी प्रयागराज), व्यापार मंडल अध्यक्ष नीरज जायसवाल और महिला प्रकोष्ठ अध्यक्ष स्वाती निरखी ने दीप प्रज्वलन कर किया। केंद्र निदेशक सुदेश शर्मा ने विशिष्ट अतिथि नरेंद्र सिंह (सेवानिवृत्त लेखाधिकारी, एनसीजेडसीसी) और लल्लन यादव को अंगवस्त्र, स्मृति चिन्ह और पौधा भेंट कर सम्मानित किया।

कार्यक्रम की शुरुआत भजन गायक कमलेश पाठक की भक्तिमय प्रस्तुतियों से हुई। उन्होंने ष्राम चरन सुखदायीष् और स्थानीय बोली में भजन प्रस्तुत किए। इसके बाद अनुराधा श्रीवास्तव और मणिमाला सिंह ने संस्कार गीतों व भजनों से पंडाल में भक्ति का माहौल बनाया।

लोकनृत्य की प्रस्तुतियों में नितिन दवे और उनके साथियों ने गुजरात का पारंपरिक टीपानी और डांडिया रास प्रस्तुत किया। रामकृष्ण रजक ने हिमाचल प्रदेश का कांगड़ा नृत्य पेश किया, जबकि शब्बीर सिद्धी और उनके दल ने सिद्धी धमाल नृत्य से दर्शकों को आकर्षित किया। युसुफ खान ने भपंग वादन से कार्यक्रम को विशेष बनाया। मंच संचालन डॉ. आकांक्षा पाल ने किया।

मेले के नौवें दिन, मंगलवार को शाम 5 बजे से कवि सम्मेलन और मुशायरे का आयोजन किया गया। इसमें गजेंद्र सोलंकी, अजहर इकबाल, सैयद फजले रजा, ताजवर सुल्ताना, नजीब इलाहाबादी, अशोक बेशर्म, शैलेन्द्र मधुर और श्लेष गौतम जैसे चर्चित रचनाकार अपनी रचनाएं प्रस्तुत किया।


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